हम पंछी उनमुक्त गगन के

हम पंछी उनमुक्त गगन के

पिंजर बद्ध न गा पाएंगे

कनक तीलियों से टकराकर

पुलकित पँख टूट जाएँगे


हम बहता जल पीने वाले

मर जाएँगे भूखे प्यासे

कहीं भली है कटुक निबुरी

कनक कटोरी की मैदा से


स्वर्ण श्रिंखला के बन्धन में

अपनी गति उडान सब भूले

बस सपनों में देख रहे हैं

तरु की फुन्गी, पर के झूले


ऐसे थे अरमान कि उडते

नील गगन की सीमा पाने

लाल किरन सी चोंच खोल

चुगते तारक, अनार के दाने


होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होडा होडी

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती साँसों की डोरी


नीड न दो चाहे टहनी का

आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो

लेकिन पंख दिये हैं तो

आकुल उडान में विघ्न डालो

Comments

अच्छी कवितायें हैं।
saraswati said…
so nice........but there is a mistake, plz. correct that to make it more beautiful.Its really nice.........You r genious mere bhai.

Popular Posts