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मधुशाला

इक मोहरे का सफ़र

प्रयाणगीत

लोहे का स्वाद

गुलाबी चूड़ियाँ

अपने ही मन से कुछ बोलें

हम पंछी उनमुक्त गगन के

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले

रात युँ कहने लगा मुझसे गगन का चाँद

आभार

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती

बसंती हवा